शास्त्रों में एक कथन है - पश्यतीति पशु - मतलब जो देखता है वह पशु है, यानि हमारी इंद्रियां पशु हुईं। चूंकि इंद्रियों के माध्यम से हम इस जगत को देखते-जानते हैं। गाय को शास्त्रों में अघन्या कहा गया है। गो का अर्थ गाय के अलावे इंद्रिय भी है और अघन्या का एक अर्थ इन इंद्रियों का हनन न करना है। मतलब देह में जो बुद्धि, मेघा, मन, चित्त, नेत्र, नाक, कान, हाथ-पांव हैं - वे अघ्न्या हैं, उनके माध्यम से उनके उपयुक्त सहज कार्य करते रहना चाहिए गलत कामों से उनका हनन नहीं करना चाहिए। इन्हीं इंद्रियों के स्वामी के रूप में इंद्र गोपति कहलाते हैं।
वेदों में इंद्र को शतक्रतु कहा गया है, इसका मतलब इस शरीर से सौ साल तक सानंद जीना है। पुरूष खुद यज्ञ है, जिसका यजमान आत्मा है, जिसकी पत्नी श्रद्धा है, यह पुरूष 24 साल की आयु से प्रात:सवन आरंभ करता है और सौ साल तक संतानोत्पत्ति करता हुआ जीता है यानि यज्ञ करता है। यह यज्ञ वह अपनी अघन्या इंद्रियों के माध्यम से करता है जिसका मालिक इंद्र है।
यूं इंद्र को तीन लोकों भूलोक, अंतरिक्ष और द्योलोक में अंतरिक्ष लोक का देवता वायु माना जाता है। वायु के रूप में यह इंद्र मेघ रूपी वृत्र को तडि़त कराकर बारिश कराता है, इसे ही वृत्रासुर बध की कथा के रूप में मानवीकृत किया गया है।
Sushma Kumar ने जवाब का अनुरोध किया है
वेदों में इंद्र को शतक्रतु कहा गया है, इसका मतलब इस शरीर से सौ साल तक सानंद जीना है। पुरूष खुद यज्ञ है, जिसका यजमान आत्मा है, जिसकी पत्नी श्रद्धा है, यह पुरूष 24 साल की आयु से प्रात:सवन आरंभ करता है और सौ साल तक संतानोत्पत्ति करता हुआ जीता है यानि यज्ञ करता है। यह यज्ञ वह अपनी अघन्या इंद्रियों के माध्यम से करता है जिसका मालिक इंद्र है।
यूं इंद्र को तीन लोकों भूलोक, अंतरिक्ष और द्योलोक में अंतरिक्ष लोक का देवता वायु माना जाता है। वायु के रूप में यह इंद्र मेघ रूपी वृत्र को तडि़त कराकर बारिश कराता है, इसे ही वृत्रासुर बध की कथा के रूप में मानवीकृत किया गया है।
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