यह एक सामान्य सा सवाल है, पर राजनीति ने इसे आज कठिन बना दिया। आज तक किसी ने मुझसे नहीं पूछा कि क्या मैं धर्मनिरपेक्ष हूं, पर शायद मेरे जवाबों से सब तय करें कि हां मैं निरपेक्ष हूं। धर्म के बारे में मैं सोचता ही नहीं फिर यह निरपेक्ष या सापेक्ष होना कैसे हो गया। सीधी सी बात है अगर मैं दूसरे धर्मों से घृणा नहीं करता तो मैं धर्मनिरपेक्ष माना जांउगा, आज के माहौल में। जब कि सभी धर्म प्रेम की शिक्षा देते हैं इस पर सभी ज्ञानी सहमत दिखते हैं।
हां इधर तीन सालों से वेद आदि का लगातार अध्ययन कर रहा। पर यह स्वाध्याय के आनंद के तहत। धर्म भावनात्मक मामला है उस पर कोई स्पष्ट जवाब कैसे दे सकता है। अगर धर्म का संबंध ईश्वर से है तो हर आदमी की ईश्वर की अपनी अवधरणा होगी। पर उसे वह केवल बता सकता है दूसरे को दिखा नहीं सकता।
गंगा जमुनी तहजीब भी मिले जुले रहन सहन के बारे में बताती है। ऐसा तो है नहीं कि गंगा शिव की जटा से आयी आयी और यमुना को मुसलमान कहीं से लेकर आये।
मिथलेश बैरागी ने जवाब का अनुरोध किया है
हां इधर तीन सालों से वेद आदि का लगातार अध्ययन कर रहा। पर यह स्वाध्याय के आनंद के तहत। धर्म भावनात्मक मामला है उस पर कोई स्पष्ट जवाब कैसे दे सकता है। अगर धर्म का संबंध ईश्वर से है तो हर आदमी की ईश्वर की अपनी अवधरणा होगी। पर उसे वह केवल बता सकता है दूसरे को दिखा नहीं सकता।
गंगा जमुनी तहजीब भी मिले जुले रहन सहन के बारे में बताती है। ऐसा तो है नहीं कि गंगा शिव की जटा से आयी आयी और यमुना को मुसलमान कहीं से लेकर आये।
मिथलेश बैरागी ने जवाब का अनुरोध किया है
मैंने अभी आपका ब्लॉग पढ़ा है, यह बहुत ही शानदार है।
जवाब देंहटाएंViral-Status.com
धन्यवाद
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