शुक्रवार, 25 अक्तूबर 2019

ईश्वर से हम क्यों मांगते हैं, क्‍या उसे पता नहीं कि हमें क्‍या चाहिए ?

असल में ईश्‍वर को लेकर मोटा मोटी दो तरह की अवधारणाएं हैं हमारे यहां।
पहले के अनुसार जो गहन विमर्श है वह ब्रहृम को लेकर है जो सृष्टि का संचालक है जिसने इस जगत का निर्माण किया। वह इस जगत में किसी के साथ भेद नहीं करता, वह एक तरह से प्रकृति की निर्माणकारी शक्ति का प्रतीक है।
राम को भी रोम रोम में बसने वाला कहा गया है। प्रहलाद भी कहते हैं कि हममें तुममे खडग खंभ में सबमें हैं भगवान, महाभारत में भी ईश्‍वर को एक जगह हाथी,महावत,पेड के पत्‍तों आदि सबमें बताया गया है। शंकराचार्य और दयानंद भी मूर्तिपूजा के पक्षधर नहीं।

दूसरी ओर वेदों में तमाम ऋचाएं हैं जिनमें लोग इंद्र से अग्नि आदि देवताओं से कुछ ना कुछ मांगते हैं। एक ऋचा में कहा गया है कि इंद्र हमारा तुमसे लेन देन का रिश्‍ता है।
मुझे लगता है लोगों में यह मांगने की प्रवृति वेदों से आयी है जबकि सिद्धांतत: वेद मूर्तिपूजा में विश्‍वास के बारे में कुछ नहीं बताते।
इस तरह हम देखते हैं कि हमारे यहां धर्म के नाम पर निरा भौतिकवाद जगह पा रहा है। ब्रह्म का चिंतन करता आज कहां, कोन दिख रहा, कोई बताए हमें, फिर कोई ब्रह्मण कैसे रह गया।

बुधवार, 23 अक्तूबर 2019

Quora पर सवाल - आपकी सबसे बड़ी उपलब्धि क्या है ?

हर सांस मेरे लिए एक उपलब्धि है...

इस तरीके से, मैं सोचता नहीं हूं। निजी उपलब्धि मेरा लक्ष्य नहीं।

गहरी नींद को मैं रोजाना की उपलब्धि मानता हूँ।
लोग मुझपर विश्वास करते हैं, यह मेरी उपलब्धि है।
किसी की भी बात सुनने को मैं प्रस्तुत रहता हूं, यह सहजता मेरी उपलब्धि है।
जीवन से संबंधित सहज सवालों का मेरे पास एक कॉन्विनसिंग जवाब होता है, और इसे मैं उपलब्धि मानता हूँ।
ऐसी उपलब्धियां मुझे रोजाना प्राप्त होती रहती हैं।
हर सांस मेरे लिए एक उपलब्धि है, क्योंकि इस क्षणभंगुर संसार में वो मुझे टिके रहने की ताकत देती है।

लोग जब गुस्से में होते हैं तो खाना क्यों छोड़ देते हैं? ऐसा कर वे क्या जाहिर करना चाहते हैं?

तीसेक साल पहले मैं भी कभी कभार नाराजगी में रात का खाना छोड़ देता था। नराजगी किसी से भी हो कारण कोई भी हो पर इस तरह की नाराजगी से चिंतित केव...