हां, यह अभी भी है मुझमे।
अब मुझे स्टेज पर जाना अच्छा नहीं लगता। इसी कारण हाल के वर्षों में मैंने रेडियो और दूरर्शन के कार्यक्रमों में जाने से भी बचने की कोशिश की है।
गोलमेज पर बैठकर मैं पूरे दिन लोगों से बहस कर सकता हूं पर अलग से स्टेज पर बोलना सहज नहीं।
पिछली बार एक जगह अचानक बुला देने से मैं ठीक से बोल नहीं सका।
यूं इससे पहले स्थिति ठीक थी। ऐसे में मैं पहले से तैयारी कर जो बोलना है उसे लिखकर ले जाता हूं। गांधी और नेहरू की भी आरंभ में यही स्थिति थी।
पटना में एक बार पुस्तक मेले में अग्रज पत्रकार मित्र श्रीकांत ने अचानक मुझे एक मंच पर बुला दिया।
ऐसे में सीधे सहज मुददे पर जो आपकी राय हो उसे रखना सही होता है।
मैंने ऐसा ही किया तो मेरे बोलने पर तालियां बजीं।
यूं स्टेज पर कविताएं पढने में मुझे कभी दिक्कत नहीं होती।
अब मुझे स्टेज पर जाना अच्छा नहीं लगता। इसी कारण हाल के वर्षों में मैंने रेडियो और दूरर्शन के कार्यक्रमों में जाने से भी बचने की कोशिश की है।
गोलमेज पर बैठकर मैं पूरे दिन लोगों से बहस कर सकता हूं पर अलग से स्टेज पर बोलना सहज नहीं।
पिछली बार एक जगह अचानक बुला देने से मैं ठीक से बोल नहीं सका।
यूं इससे पहले स्थिति ठीक थी। ऐसे में मैं पहले से तैयारी कर जो बोलना है उसे लिखकर ले जाता हूं। गांधी और नेहरू की भी आरंभ में यही स्थिति थी।
पटना में एक बार पुस्तक मेले में अग्रज पत्रकार मित्र श्रीकांत ने अचानक मुझे एक मंच पर बुला दिया।
ऐसे में सीधे सहज मुददे पर जो आपकी राय हो उसे रखना सही होता है।
मैंने ऐसा ही किया तो मेरे बोलने पर तालियां बजीं।
यूं स्टेज पर कविताएं पढने में मुझे कभी दिक्कत नहीं होती।
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